नाव को लेकर
प्रतियोगिता के लिए
नाव को लेकर
किनारे पर बैठा हूँ अपनी नाव को लेकर।
बैठो आकर सैलानी मधुर से भाव को लेकर।
सुहानी सी झील में शिकारा रोज चलाता हूँ।
सुनता लोगों की बातें बहुत ही चाव को लेकर।
मन में होती है चाहत सैलानी बहुत यहां आएं।
कमा लूँ मैं भी दो पैसे सुकूँ की छाँव को लेकर।
सुहानी रात पूनम की बहुत दिलकश नज़ारा है।
रहूँ बैठा किनारे पर इश्क की ठाँव को लेकर।
कहीं केसर की क्यारी है कहीं है फूलों की घाटी।
काश जा पाता घर अपने महकते गाँव को लेकर।
चलो अब बर्फ की चादर पर खूब मस्ती करते हैं।
हंसी कश्मीर वादियों के नायाब अंदाज़ को लेकर।
पूरे कर ले अरमा जो दिलों में छुपी बैठी हो I
न आ पाएं कभी दुबारा इस उत्साह को लेकर।।
इन वादियों में साहिब, नूर जन्नत का फैला है।
फैलाते लोग कुछ आतंक घिनौने स्वार्थ को लेकर।।
अगली बार आओगे जब मैं रहूँ या ना रहूँ 'स्नेह'।
मगर होगा यहाँ कोई मेरी इस नाव को लेकर।
स्नेहलता पाण्डेय स्नेह
Dr. Arpita Agrawal
22-Mar-2022 12:08 AM
उम्दा सृजन 👌
Reply
Swati chourasia
21-Mar-2022 11:49 PM
बहुत ही सुंदर रचना 👌👌
Reply
Gunjan Kamal
21-Mar-2022 09:17 PM
शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻
Reply
Sneh lata pandey
21-Mar-2022 10:49 PM
Thanks
Reply